एक ऐसा मंदिर जो संतान प्राप्ति के लिए है प्रसिद्ध,नवरात्र में आशीर्वाद पाने जुट रही है भक्तों की भीड़…@

(रियाज़ अशरफी): बिलासपुर के सीपत क्षेत्र में सुदूर वनांचल के ग्राम सोंठी में स्थित बगलामुखी मां मन्ना दाई का मंदिर एक ऐसा मंदिर है, जो संतान प्राप्ति के लिए प्रसिद्ध है। वर्षो से संतान सुख से वंचित महिलाएं आस्था के साथ माता के दरबार मे अपनी मन्नत लेकर पहुंचती है। भक्तों का विश्वास है कि उनकी मुरादे यहां पूरी होती है। नवरात्रि में मातारानी के दर्शन और आशीर्वाद पाने मंदिर में भक्तों की भीड़ उमड़ रही है। मंदिर में भक्तों ने मनोकामना कलश भी जलवाए है। नवरात्रि में पर्व में माता के मंदिर परिसर में दुर्गा प्रतिमा और ज्वारा की स्थापना की गई है। घृत और तेल मनोकामना ज्योति प्रज्वलित किए गए है। इस साल यहां लगभग 351 से अधिक ज्योति कलश प्रज्वलित किए जा रहे है।

माता की सेवा में मां मन्नादाई सेवा समिति के उपाध्यक्ष भीमप्रताप ठाकुर, कोषाध्यक्ष भूपेंद्र तिवारी, सचिन, राजकिशोर ठाकुर, हीरालाल पटेल, ठाकुर राम पटेल, महेंद्र जायसवाल, लक्ष्मी नारायण जायसवाल, मानसी पोर्ते, जगदीश जायसवाल एवं घनश्याम सिंह ठाकुर सहित अन्य ग्रामवासी लगे हुए है।

मूर्ति को लाने 12 बैल गाड़िया टूटी,आखिर में भक्त के कंधों पर सवार होकर आई माता
मंदिर की व्यवस्था के लिए बनाई गई जय मां मन्नादाई सेवा समिति के अध्यक्ष रामेश्वर जायसवाल ने बताया कि बग्लामुखी मां मन्नादाई स्वयं प्रकाट्य देवी है जो आज से लगभग चार सौ साल पूर्व गांव के घामधुर्वा बैगा नामक गोंड़ आदिवासी को मां मन्ना दाई ने स्वयं स्वप्न में आकर कहा था कि मैं सोंठी के ठड़गा पहाड़ की गुफा में विराजमान हूं, बैगा ने दूसरे दिन सुबह गांव के जमीदार को रातः के सपने वाली बात बताई। मां मन्ना दाई को आदर पूर्व गांव में लाने जमीदार ने स्वयं बैल गाड़ी लेकर गए। पहाड़ स्थित गुफा पहुंचे और माता की मूर्ति को बैल गाड़ी में रखना चाहा तब गाड़ी टूट गई फिर दूसरी गाड़ी मंगवाई गई वह भी टूट गई एक-एक कार 12 बैल गाड़िया टूट गई, रात होने पर धामाधुर्वा बैगा के स्वप्न में मन्ना दाई फिर आई और कहा कि मैं ऐसे नही जाऊंगी तुम्हे अपने कंधे पर उठाकर मुझे ले जाना होगा, बैगा से ऐसा ही किया और पहाड़ की गुफा से कंधों में उठाकर बस्ती के करीब लाया, जहां आज तक उनकी मूर्ति विराजित हैं।

धामाधुर्वा बैगा के वंशजो के कंधों पर आज भी मूर्ति रखने के निशान है
बताया जाता है कि मां मन्ना दाई ने बैगा धामाधुर्वा के सपनो में आकर ठरगा पहाड़ की गुफा से बैगा के कंधों में सवार होकर सोंठी गांव में जाने की इच्छा जताई थी, सपनो के अनुरूप धामाधुर्वा ने पहाड़ की गुफा से अपने कंधों में उठाकर माता की मूर्ति को गांव लेकर आया था। मूर्ति को उठाने के दौरान मूर्ति की वजन से बैगा के कंधों पर निसान पड़ गए थे। आज भी कई पीढ़ी गुजर जाने के बाद भी बैगा के वंशजो के कंधों पर माता रानी का निशान बना हुआ है।
मां मन्ना दाई हैं सत महिनिया उनकी छः बहने आसपास के गांव में विराजित है
मंदिर समिति के अध्यक्ष रामेश्वर जायसवाल के अनुसार मां मन्ना दाई की छह और बहन जिन्हें सत बहिनिया के नाम से आसपास के गांव में विराजमान है। वर्तमान में जिस स्थान पर मां मन्ना दाई विराजित है। उस परिसर में एक और मंदिर है जहां खोला गोसाईन कालरात्रि देवी विराजित है। प्रारंभ में यह मंदिर एक झोपड़ीनुमा था जिसे गांव वालों ने पुनरुद्धार कर खूबसूरत और भव्य बना दिया है।